छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से ही छत्तीसगढ़ में फिल्मों के निर्माण के साथ ही छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्द्योग की स्थापना हुई, और फिल्मों के बाजार में आने और उस पर लोगों की प्रतिक्रियाओं का दौर प्रारंभ हुआ , मोर छईया भुइयां , जहाँ भूलो माँ बाप ला जैसी अच्छी अच्छी फ़िल्में बनी और दर्शकों के द्वारा सराही भी गयी इन फिल्मों में छत्तीसगढ़ की मति की सुगंध ने ही इन्हें मोहक बनाया और कुछ फिल्मों ने तो राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर अपनी जोरदार उपस्थिति भी दर्ज करायी जिससे न केवल इन फिल्मों का वरन इनके कलाकारों का इनके निर्माताओं का और इनसे जुड़े हुए सभी व्यक्तियों के साथ ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति का भी प्रचार हुआ और लोगों ने उसे पसंद किया!!
यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था मगर जैसे जैसे समय बीतता गया इन फिल्मों में छत्तीसगढ़ की संस्कृति से अधिक बाजारवाद की संस्कृति नजर आने लगी और आज यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है की छत्तीसगढ़ फिल्म निर्माण से जुड़े कुछ ऐसे लोग जिहे संस्कृति से कोई लगाव नहीं है और जिनका उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना है , के कारण यह उद्द्योग अब अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है , छत्तीसगढ़ की संस्कृति को उसके आचार विचारों को और यहाँ के महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक धरोहरों को पहचान दिलाना ही इनका मूल उद्देश्य था जो आज कहीं भी नजर नहीं आता और यह उद्द्योग भी अब दिशाहीन होता जा रहा है !! यहाँ भी वाही फूहड़ और अश्लील फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन होने लग गया है जिससे निश्चित ही हमारी संस्कृति और हमारी मति की सुगंध अब दूषित हो रही है !!
जब जब निर्माताओं ने अच्छी कहानी संवाद और अच्छी पटकथा प्रस्तुत की है फ़िल्में चली हैं और जब जब इस तरह दिशाहीन फ़िल्में बनाई गयी है उसे दर्शकों ने नाकारा ही है , इससे स्पस्ट है की दर्शक भी ऐसी फ़िल्में नहीं देखना चाहते हैं!! आज कुछ निर्माताओं ने बहार से कलाकारों को बुलाकर फिल्मों में काम दे रहे हैं वह भी कुछ हद तक सही नहीं है , जब हमारे पास बालीवुड को टक्कर देने वाले भैयालाल हेदाऊ , सुदामा शर्मा , अनुज शर्मा , प्रकाश अवस्थी, मोना सेन , ममता चंद्रक्कार जैसे अच्छे अच्छे कलाकार हैं तो हम क्यों बाहरी कलाकारों को बढ़ावा दे रहे हैं ? क्या यह हमारे योग्य कलाकारों के साथ अन्याय नहीं ? निश्चित ही जब हमारे ये प्रतिभावान कलाकार अन्य जगहों पर जाते हैं तो इन्हें काम नहीं दिया जाता है तो फिर इन के प्रदेश में अन्य लोगों को काम देने से पूर्व इन्हें महत्व देना चाहिए !! और अगर हम सच में छत्तीसगढ़ी फिल्मोदद्योग का विकास चाहते हैं तो हमें कुछ स्वार्थी लोगों को दूर कर गरीब ही सही मगर धरती से जुड़े प्रतिभावान लोगों को महत्व देना होगा , इसके साथ ही अच्छे स्तर के फिल्मों का निर्माण करना होगा जिससे हमारी संस्कृति को पहचान मिले और हमारे कलाकार भी इसके माध्यम से अपनी पहचान कायम कर सकें , निश्चित ही अश्लील और फूहड़ फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन बंद करना चाहिए और यह भी समझ लेना चाहिए की अब ढ़ छत्तीसग
यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था मगर जैसे जैसे समय बीतता गया इन फिल्मों में छत्तीसगढ़ की संस्कृति से अधिक बाजारवाद की संस्कृति नजर आने लगी और आज यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है की छत्तीसगढ़ फिल्म निर्माण से जुड़े कुछ ऐसे लोग जिहे संस्कृति से कोई लगाव नहीं है और जिनका उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना है , के कारण यह उद्द्योग अब अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है , छत्तीसगढ़ की संस्कृति को उसके आचार विचारों को और यहाँ के महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक धरोहरों को पहचान दिलाना ही इनका मूल उद्देश्य था जो आज कहीं भी नजर नहीं आता और यह उद्द्योग भी अब दिशाहीन होता जा रहा है !! यहाँ भी वाही फूहड़ और अश्लील फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन होने लग गया है जिससे निश्चित ही हमारी संस्कृति और हमारी मति की सुगंध अब दूषित हो रही है !!
जब जब निर्माताओं ने अच्छी कहानी संवाद और अच्छी पटकथा प्रस्तुत की है फ़िल्में चली हैं और जब जब इस तरह दिशाहीन फ़िल्में बनाई गयी है उसे दर्शकों ने नाकारा ही है , इससे स्पस्ट है की दर्शक भी ऐसी फ़िल्में नहीं देखना चाहते हैं!! आज कुछ निर्माताओं ने बहार से कलाकारों को बुलाकर फिल्मों में काम दे रहे हैं वह भी कुछ हद तक सही नहीं है , जब हमारे पास बालीवुड को टक्कर देने वाले भैयालाल हेदाऊ , सुदामा शर्मा , अनुज शर्मा , प्रकाश अवस्थी, मोना सेन , ममता चंद्रक्कार जैसे अच्छे अच्छे कलाकार हैं तो हम क्यों बाहरी कलाकारों को बढ़ावा दे रहे हैं ? क्या यह हमारे योग्य कलाकारों के साथ अन्याय नहीं ? निश्चित ही जब हमारे ये प्रतिभावान कलाकार अन्य जगहों पर जाते हैं तो इन्हें काम नहीं दिया जाता है तो फिर इन के प्रदेश में अन्य लोगों को काम देने से पूर्व इन्हें महत्व देना चाहिए !! और अगर हम सच में छत्तीसगढ़ी फिल्मोदद्योग का विकास चाहते हैं तो हमें कुछ स्वार्थी लोगों को दूर कर गरीब ही सही मगर धरती से जुड़े प्रतिभावान लोगों को महत्व देना होगा , इसके साथ ही अच्छे स्तर के फिल्मों का निर्माण करना होगा जिससे हमारी संस्कृति को पहचान मिले और हमारे कलाकार भी इसके माध्यम से अपनी पहचान कायम कर सकें , निश्चित ही अश्लील और फूहड़ फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन बंद करना चाहिए और यह भी समझ लेना चाहिए की अब ढ़ छत्तीसग
के संस्कृति के साथ खिलवाड़ बर्दास्त नहीं किया जायेगा............
aaj mere blog par mujhko hi comments karne ka man ho raha hai kyonki maine ise banae me iske punarnirman me behad mehnat kiya hai .........
ReplyDeletemujhe aaj gahe bagahe us insan ko dhanyavad dene ka man ho raha hai jisne mere blog sahit profile ko hack kar delete diya aur mujhme is ghatna ke madhyam se naye utsah ka sanchar karaya ...........!!
रोक पायेगी हमे क्या नागफनियाँ रस्ते की
ReplyDeleteमै अकेले अग्नि पथ पर ही चला हूँ
वक्त ने हम सब को इतना सताया की
सूर्य हमको देख कर आंखे चुराता है
मुश्किलों को रोज़ हम देते चौनती
हर अँधेरा दूर से ही लौट जाता है
है हुम्हे मालूम सर्पो के सभी गंदे इरादे
मै विवर के पास हरदम ही पला हूँ
बांध पाए गा नहीं कोई प्रलय का वेग अब तो
मै प्रलय के पूर्व को वो जलजला हूँ
रोक पायेगी हमे क्या नागफनियाँ रस्ते की
मै अकेले अग्नि पथ पर ही चला हूँ
हैक करने दो ..................देखते है किसा का हौसला पस्त होता है
हमारी बोलग को हैक कर सकते हो हमारी कलम को तो नहीं ना
हर हर महादेव
हल्ला बोल ......... जिन्दाबाद.
ReplyDeletehttp://hamarchhattisgarh.blogspot.com