Monday, June 28, 2010

क्या आर्थिक सम्पन्नता ही राजनीती का मापदंड है ?


वन्दे मातरम !!
मै आपका अपना गौरव शर्मा "भारतीय" वर्तमान राजनैतिक परिवेश में युवाओं की उपयोगिता के साथ ही राजनीती में उनकी सार्थकता के सम्बन्ध में अपने विचारों को आप तक पहुँचाने के के लिए उपस्थित हूँ !!
आज राजनीती का अर्थ बदलता जा रहा है तथा आज की राजनीती केवल पैसों की राजनीती बनती जा रही है तथा केवल धनोपार्जन ही उद्देश्य बनता जा रहा है या कहा जा सकता है की किंचित वर्ग विशेष के द्वारा सुनियोजित रणनीति के तहत राजनीती को महंगा एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न जनों के लिए सुलभ बनाया जा रहा है !!
मै बात कर रहा हूँ युवाओं के सम्बन्ध में विशेषकर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार के युवा के सम्बन्ध में, वे अगर राजनीती में सक्रिय है तो उसे अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है उन्हें तब तक महत्व नहीं दिया जाता जब तक उसे किसी बड़े राजनेता का "आशीर्वाद" प्राप्त न हो या फिर वह "सम्पन्न" न हो !!
मै स्वयं राजनैतिक कार्यकर्ता होते हुए यह प्रश्न देश के तमाम राजनैतिक दलों से पूछना चाहता हूँ की क्या किसी युवा के कुशल राजनैतिक छमताओं का कोई मोल नहीं ?? क्या सम्पन्नता ही राजनीती का मापदंड है ?? वर्तमान में संगठन के स्तर पर भी चुनाव कराये जा रहे हैं , स्वागतयोग्य है यह निर्णय , मगर चुनावी प्रक्रिया में अगर गौर करें तो हमें पता चलता है की यहाँ भी "सम्पन्नता" का ही बोलबाला है और सामान्य कार्यकर्ता उपेक्छित है !! प्रश्न यह है की इस प्रकार से जब धनि वर्ग को महत्व दिया जाना है तो क्यों मध्यमवर्गीय तथा गरीब परिवार के कार्यकर्ताओं का शोषण किया जाता है ?? मेरा किसी सम्पन्न व्यक्ति या वर्ग के प्रति किसी भी प्रकार का कोई विरोध नहीं है मगर मै उस कार्यकर्ता की व्यथा को आपके सामने रखना चाहता हूँ जो वर्षों से निस्वार्थ भाव से समर्पित होकर कार्य करता है मगर जब अवसर आता है संगठन में प्रतिनिधित्व देने का तो कहीं न कहीं नेतृत्व छमता , समर्पण पर आर्थिक सम्पन्नता भरी पड़ती है , सक्रिय कार्यकर्ता देखते रह जाता है और ऐसा व्यक्ति जिसका संगठन में कोई योगदान नहीं है वह बाजी मार जाता है , जरा सोचिये क्या गुजरता होगा उस व्यक्ति पर ?? यह किसी एक दल की नहीं कमोबेश आज की राजनैतिक परिवेश में यह पीड़ा प्रत्येक दल से सम्बंधित उन नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को है जो निम्न अथवा मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुख रखते हैं !!
मै यहाँ केवल राजनितिक दलों पर इस दोष को मढ़कर इस बहस को समाप्त नहीं कर सकता यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की देश में संचालित निर्वाचन प्रक्रिया की भी कमोबेश यही स्थिति है , दिन प्रति दिन निर्वाचन प्रक्रिया महँगी होती जा रही है और राजनीती आम आदमी से कोशों दूर होती जा रही है कोई सामान्य व्यक्ति चुनाव लड़ने की बात सोच तक नहीं सकता !! और कहीं वह भूलवश ऐसा कर बैठा तो रही सही कसर जनता {जनता से आशय यहाँ कुछ विशेष अल्प सिक्छित वर्ग से है} पूरी कर देती है तात्कालिक लाभ और लालच में आकर वोट देती है जिससे निश्चित ही गलत चुनाव होता है और भ्रस्टाचार में वृद्धि होती है कहना बेवजह न होगा की जो प्रत्याद्शी चुनाव में लाखों करोड़ों रूपये खर्च कर जीतेगा वह उससे कहीं अधिक धन अर्जित करना चाहेगा तो ऐसी स्थिति में अगर नुकसान किसी का होता भी है तो जनता का ही है !!
मै इस विस्तृत लेख और आप सभी के माध्यम से देश के समस्त राजनैतिक दलों और से निवेदन करना चाहता हूँ की वे समर्पित और योग्य कार्यकर्ताओं का सम्मान कर देश को कुशल नेतृत्व प्रदान करें और निर्वाचन आयोग से भी मै अपील करता हूँ की महँगी होती निर्वाचन प्रक्रिया पर अंकुश लगाकर लोकतंत्र का सम्मान करें ...............वन्दे मातरम !!

2 comments:

  1. Nice thoughts Gourav. Writting like mature person. I wish, may the msg., given by you through this post, reach to its goal. My goodwishes are always with u.

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  2. शर्मा जी वन्दे मातरम , कैसे हैं आप ? आपके विचार आजकल बड़ी सच्चाई के साथ बहार आ रहे हैं, अक्सर देखने में आता है की नेता अपनी और राजनीती की बुराइयों को छुपाने का प्रयास करते हैं मगर आपने जिस प्रकार से अपने ब्लॉग के माध्यम से राजनैतिक परिवेश और उसमे व्याप्त बुराइयों को लिखा है वह साहसिक और काबिलेतारीफ है !!
    यह सही है की राजनीती दिन ब दिन महँगी होती जा रही है और आम आदमी से कोशों दूर भी पर कहीं न कहीं इसमें जनता भी जिम्मेदार है , मै आपके इस साहसिक और प्रेरणादायक लेख के लिए पुनः अपने और "नवजागरण शोसल यूथ फ्रेंड्स क्लब रायपुर" की और से शुभकामनायें देती हूँ और यह विश्वास दिलाती हूँ की हम सब सदा आपके साथ हैं !!

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